यह जो पब्लिक है वह सब जानती है

यह जो पब्लिक है वह सब  जानती है

जौनपुर। जिस कार्य के लिए सख्ती से मना किया गया है कि अगर आप किसी तरह से किसी असहाय निर्धन व्यक्ति का सहयोग करते हैं तो जिस हांथ से आप सहयोग करते हैं दूसरे हांथ को उसकी जानकारी तक ना हो लेकिन ठीक इसके उलट वर्तमान समय में कुछ ऐसे लोग हैं जो अपने नाम और अपनी पहचान एवं सुंदर छवि दिखाने के लिए इन्हीं असहाय निर्धनों का मजाक बनाते हुए खाद्य सामग्री के साथ फोटो खींचवाकर  समाज में अपनी पहचान  बनाने को लेकर प्रयासरत है जिसकी सामाजिक लोगों में काफी चर्चा होने के साथ ही इस तरह से शोहरत बटोरने वाले लोगों की निंदा भी हुआ करती हैं।



बता दे दशकों पूर्व किसी शायर ने अपनी पंक्ति में कहा था कि यह जो पब्लिक है वह सब जानती है अंदर क्या है बाहर क्या है वह यह सब  पहचानती है। तात्पर्य यह है कि कौन किस तरह से अपने आप को समाज में उच्च श्रेणी का दानदाता  बन्ने की गरज से विभिन्न प्रकार का हथकंडा अपनाते हैं। इसी कड़ी में वर्तमान समय में देखा जाए तो पाक माहे रमजान में अपने नाम और पहचान के लिए गरीब निर्धनों की 10 =20 की संख्या में खाद्य सामग्री से मदद के बहाने समाज में अपनी शर्ट की कॉलर खड़ी कर चलने हेतु गरीब एवं निर्धनों के चुलहो पर अपनी रोटियां सेक रहे हैं। इस तरह का कृत शहर के दो-चार मोहल्लों के लोगों द्वारा ही अंजाम दिया जा रहा है वह भी विभिन्न नामों की कमेटिया और विभिन्न नामों के बैनर तले वह भी अपने धन  से नहीं गरीब निर्धनों असहाय लोगों के लिए मुख्य रूप से विभिन्न  प्रकार के सहतार्थ हेतु खाड़ी देशों एवं अपने देश के विभिन्न प्रांतो से मिलने वाले धनो से की जाती है। खाद्य सामग्री कि इस तरह की वस्तु जैसे आटा, चावल, तेल मसाले आदि। और यह सामान उन्हीं 10 से 20 लोगों को दिया जाता है जिनका नाम इनके द्वारा बनाई गई सूची में होता है। इसके बाद शुरू होता है असली खेल कुछ बेवकूफ लालची  लाभ के चक्कर में ऐसे लोगों की पहचान बनवाने के लिए सोशल मीडिया एवं समाचार पत्रों के माध्यम से उनके कमेटी बैनर की फोटो और खबर निकलवाने में लग जाते हैं और कभी-कभी कोई एक समाचार पत्र में छपवा कर कामयाब भी हो जाते है। और जिन लोगों द्वारा ऐसे लोगों को धन उपलब्ध कराया जाता है उनको यही समाचार पत्र व्हाट्सएप ग्रुप दिखाकर संतुष्ट करने के साथ ही धन देने वालों की निगाह में अपनी साफ सुथरी छवि दिखाते हुए समाज में हीरो बनने का सपना पूरा कर क्षेत्र में ढिंढोरा पीटवाते है। दो चार मोहल्लों में ऐसे लोगों को यही लोग पाल रखते हैं कि वह घूम-घूम कर समाज में  इनकी और इनके द्वारा किए जा रहे कार्यों की प्रशंसा करते हुए इन्हें धनवान और दानदाता बताने की  एक दूसरे से हमेशा चर्चा भी करने में लगे हैं। जिससे धन देने वाले लोग हमेशा इनकी झोलियों को भरते रहें और यह लोग हमेशा की तरह निर्धन असहाय लोगों के हक पर ढांका डालकर अपनी अपनी तिजोरिया भरते रहें और अमन चैन मगन के साथ निर्धन एवं असहायो के नाम पर मिलने वाले धनो के बल पर अपना दिन दुगुना और रात चौगुनी करने में हमेशा जुटे रहेगे वह भी अपनी मंशा के अनुरूप। अगर समय रहते ऐसे लोगों के चेहरे पर बड़ी दोहरी नकाब को नहीं हटाया गया तो वह समय दूर नहीं है जब यही लोग निर्धन असहाय लोगों को जो आज 10-20 की संख्या में खाद्य सामग्री की  किट बनाकर दे दिया करते हैं उससे भी स्वयं खाजाएं और डकार तक न लें।

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