बदलता दौर: यही हाल रहा तो फुटपात पर नज़र आएंगे रील कलाकार: पारस
बदलता दौर: यही हाल रहा तो फुटपात पर नज़र आएंगे रील कलाकार: पारस
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-पारस कहते हैं- शार्ट फ़िल्मों और बलगर्टी ने कलाकारों का जमीर और कला को परे ढकेल दिया, सेक्स का तड़का देने में महिला एक्टरों का हो रहा शोषण।
जौनपुर ज़िले में डोभी क्षेत्र के वाराणसी और आजमगढ़ की सीमा से लगे इटहरा गांव के मूल निवासी फिल्म कलाकार और गायक पारस नाथ सिंह अब अपने गांव में दुनिया के प्रख्यात दार्शनिक 'ओशो रजनीश' के नाम पर 'ओशो ध्यान केन्द्र' की स्थापना में लगे हैंl इन्होंने अपने जीवन का मूल लक्ष्य बनाकर ओशो के दर्जनों अनुयाई भी बना लिए हैं l
डेढ़ दशक तक रील लाइफ गुजार चुके पारस नाथ सिंह ने तहलका न्यूज नेटवर्क से बातचीत के दौरान बताया कि उन्होंने लगभग तीन दर्जन टीवी सीरियल, टेली फ़िल्मों व कई फीचर फ़िल्मों में गायन के साथ कलाकार के रूप में काम किया l बढ़ती उम्र और पारिवारिक, सामाजिक जिम्मेदारी के मद्देनज़र वह रील से निकलकर रीयल लाइफ में आ गए l रील लाइफ में उन्होंने गायक के तौर पर मुकेश और मोहमद रफी एवं अभिनेता के रूप में ओमपुरी व नसीरुद्दीन शाह को अपना रोल मॉडल माना है l बताया कि अस्सी के दशक में कला और कलाकार को बहुत इज्जत से देखा जाता था, लेकिन अब नज़रिया बदलकर हिकारत में तब्दील हो गया l
फिल्म निर्देशक पब्लिक की मांग बताकर रील में सेक्स का तड़का देने लगेl उसी तरह संगीत में भी बलगर्टी, अश्लीलता, भौंड़ापन ने कब्जा कर लिया l पहले पटकथा की नेचुरल डिमांड पर गीत, संगीत बनते थे, अब पटकथा की ज़मीन ही दूषित होने लगी है l तब कलाकार की खोज थीम के अनुसार होती थी, अब घर व परिचितों को एक्टिंग व गायन में उठाने के लिए शार्ट फिल्में बनने लगी हैं l
अस्सी- नब्बे के दशक और वर्तमान दौर के अंतर के सवाल पर कहा कि हर दौर और हर क्षेत्र में जिसके पास गाड फादर है वही सफल होता है लेकिन तब के समय में कला को परखने वाले पारखी होते थे जो अब नहीं के बराबर हैं l अब रील को पूर्णतः व्यावसायिक बना दिया गया है l भोजपुरी फ़िल्मों में अश्लीलता के प्रश्न पर उन्होंने पलटकर सवाल किया कि कहां अश्लीलता नहीं है? भोजपुरी अपनी मिठास के लिए जानी जाती हैl इसमें पब्लिक से कलाकार सीधे और सहजता से कनेक्ट हो जाता है l पटकथा के मामले में वालीउड पर दक्षिण भारतीय फिल्में भारी पड़ने लगी हैं l
ओशो रजनीश के 'दर्शन' यानी दुनिया के बड़े दार्शनिक की तरफ़ उनके निधन के बाद आकर्षित होने के कारण पर सवाल के जवाब में पारस ने कहा कि ओशो जैसा दार्शनिक सदियों में एक बार मिलता है l ओशो का सीधा कहना है कि गलत करो या सही, उसे खुलकर करोl जरूरी नहीं कि आपकी हर बात दूसरों को भी पसन्द आये लेकिन करते वह भी ऐसा ही हैं पर छिपाकर, यहीं पर ओशो छिपाने की मना करते हैं l उनकी 'सम्भोग से समाधि' पुस्तक सबने पढ़ी लेकिन समाज के बीच उनपर उंगली भी उठाई गईl सम्भोग से ही गुजरकर बुद्ध भगवान् बन गए l ओशो कहते हैं ध्यान से बड़ा नशा कुछ नहीं है l इसके जरिये व्यक्ति खुद को समझता और अपने शरीर को एक द्रष्टा की तरह देखता है l शरीर तो माध्यम है ध्यान साधना का l
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