ईदुल फितर एवं ईदुल अजहा की तरह ही ईदे ग़दीर ख़ुशी मनाने का दिन है।
ईदुल फितर एवं ईदुल अजहा की तरह ही ईदे ग़दीर ख़ुशी मनाने का दिन है।
इमरान अब्बास की रिपोर्ट।बता दें इस्लाम धर्म में ईदुल फितर (ईद)के बाद ईदुल अजहा (बक़रीद) बड़ी ख़ुशी का पर्व है इसी लिए इस त्योहार को भी बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यहां पर ये बता देना अतिआवश्यक है कि इस्लाम धर्म ही को मानने वाले शिया मुसलमान मुख्य रूप से इन दोनों यानी ईदुल फितर ( ईद) और ईदुल अजहा (बक़रीद) के अलावा तीसरी ईद जिसको ईदे ग़दीर के नाम से जाना जाता है इस पर्व को भी बड़ी श्रद्धा पूर्वक और हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं क्योंकि यह मोहम्मद मुस्तफा स0 व0 व0 की सुन्नत है। इस दिन भी ईदुल फितर ( ईद) और ईदुल अजहा (बक़रीद) की तरह ही सारे रस्मो रिवाज के फरायेज़ को अंजाम देते हुए बड़े हर्षोल्लास के साथ इसी लिए मनाया जाता है कि हुजूरे अकरम हज़रत मुहम्मद मुस्तफा स0व0व0 ने अल्लाह ( ईश्वर) के हुक्म से अपने आखरी हजजतुल विदा के मौके पर गदीरे खुम नामक स्थान पर कम व बेस सवा लाख हाजियों की उपस्थिति में हज़रत मौला अली अ0 स0 का हांथ अपने हांथ में लेकर बुलन्द यानी (उठाकर) कहा कि (मनकुनतो मौला फाहाजा़ अलीउन मौला) यानी जिस जिस का मैं मौला हूं अली भी उस उस का मौला है। इसी कारण शिया मुसलमानों के लिए ईदुल फितर ( ईद) और ईदुल अजहा (बक़रीद) के दिन की तरह ही ईदे ग़दीर का भी दिन बहुत खास एवं महत्वपूर्ण दिन होता है।
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